देश और समाज मे आज
सबसे अधिक प्रचलित शब्दो मे कोई है तो वो हैं सामाजिक न्याय इस सामाजिक न्याय की
मांग खेर वर्षो पहले से इस देश मे होती आ रही हैं | कबीर से लेकर फुले , पेरियार , डॉ हेड्गेवार ,
अंबेडकर, कांशी राम सभी ने इस सामाजिक न्याय की बात को
बार-बार दोहराया और समाज समता के सिद्धांत पर आगे चले इसका प्रयास किया | आज भी देश मे सबसे ज्यादा किसी मुद्दे पर आम बहस होती है तो वो होता हैं
सामाजिक न्याय अब ये सामाजिक न्याय हैं क्या इसको भी समझ लेते है| भारत के दर्शन मे उपनिषदों का ज्ञान इसी सामाजिक न्याय की अवधारणा को
परिपूर्ण करता हैं जहा कहा जाता हैं
“ सर्व भ्वतु सुखिना सर्वे संतु
निरमाया |
सर्वे भद्रनी पशयनते माँ
काशयनती दुख भाग भवेत ||
इसी
प्रकार पश्चिमी चिंतक जान राल्स कहते हैं “ सामाजिक न्याय सभी प्राथमिक वस्तुओ का
योग हैं जिसमे स्वतन्त्रता , समानता , धन ,
सम्पदा सभी को समान रूप मिले “
वही डॉ भीमराव राम जी अंबेडकर की सामाजिक न्याय की अवधारणा में स्वतन्त्रता , समानता , भ्रतत्व को शामिल किया हैं | "संक्षेप मे समझा जाए तो सामाजिक न्याय सभी को समान अवसर और अधिकार मिलने सभी को समान मान कर न्याय दिया जाए के साथ जुड़ा हैं|
इस सामाजिक न्याय की अवधारणा को लेकर भारत मे विभिन्न गैर सरकारी
संस्थाए(एनजीओ) काम कर रही हैं| ये संस्थाए वर्षो से सामाजिक
क्षेत्र मे सभी को समान अवसर मिले , अधिकार मिले इसकी वकालत
करती हुए गाहे बगाहे दिख जाती हैं परंतु क्या असल मायानों मे ये सामाजिक न्याय के
लिए काम कर रही हैं और इस शब्द से ये परिचित भी हैं या इसकी आड़ मे कुछ और कर रही हैं भारत सरकार
द्वारा अभी हाल ही के दिनो मे 20,000 गैर सरकारी संस्थाओ को“
ब्लैक लिस्ट “ कर दिया गया हैं जिसके कराण बड़ा शोर भी हुआ |
सरकार का इसमे
तर्क हैं की ये सभी एनजीओ भारत सरकार और देश के खिलाफ काम कर रहे थे तथा इनके धन से जुड़े तमाम विषयो मे अपतिजंक तथ्य पाये गए हैं
| भारत मे लाखो की संख्या मे गैर सरकारी संस्थाए काम करती हैं जिनका कार्य क्षेत्र प्रमुखता से
निमम्न प्रकार हैं:- 1. शिक्षा 2.स्वास्थ्य 3.पर्यावरण 4. ग्रामीण विकास | इन प्रमुख क्षेत्रो मे काम करने की बात ये एनजीओ करते हैं भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के अकड़ो
को देखा जाए तो ज्ञात होता हैं की ऐसे 26 एनजीओ थे 13-15 मे जिनहोने मंत्रालयों से
पैसा तो लिया पर काम नहीं किया , कपार्ट के तहत आर्थिक सहयात
पाने वाले एनजीओ की संख्या 21 हैं| इसी प्रकार सामाजिक न्याय मंत्रालय के भी आकडे
हैं भारत सरकार के गढ़ मंत्रालय की माने तो 69 ऐसे एनजीओ हैं जिनमे बहुत बड़ी वितिये
अपतिया पाई गई हैं | भारत सरकार ने पाया की विदेशी आर्थिक मदद
प्रपात एनजीओ मे सबसे ज्यादा गडबड़ी पाई गईं | जिसमे तमिलनाडु
(794) और आंध्रा प्रदेश (670) के साथ सबसे आगे हैं इसी क्रम मे केरला मे 400, कर्नाटका मे 352, वेस्ट बंगाल 384 , मणिपुर मे 128 ऐसे ही सभी राज्यो मे अमूमन ऐसे ही आकडे हैं ( 2013- 14 के संसद मे प्रस्तुत आकडे )| वही सरकार को ये भी
देखने मे आया की ये विभिन्न एनजीओ देश मे अशांति पैदा करने के लिए भी काम कर रही
हैं ऐसी एक खबर महाराष्ट्र से डीएनए न्यूज़ की तरफ से आई जिसमे डीजीपी ए. एन. रॉय
मुंबई के हवाले से नक्सल और एनजीओ के बीच की साठ-गाठ को उजागर किया गया | खबर
बताती हैं की ये साठ-गाठ चल ही सामाजिक न्याय पर रही हैं कुछ एनजीओ से जुड़े लोग
जनजातियो और “विशेष आर्थिक क्षेत्र “ निर्माण मे आने वाले किसानो को संगठित कर रहा
हैं इसमे मुद्दा हैं जनजातियो को उनके जल जंगल जमीन से अलग किया जा रहा हैं वही
सेज़ के नाम किसानो से जबर्दस्ती जमीन ली जा रही हैं ऐसे 56 एनजीओ हैं जो विदेशी
अनुदान लेकर देश मे नक्सल आंदोलन को फैलाने का काम कर रहे हैं ( डीएनए न्यूज़ 17
मार्च 2008)| अमुमुन इसी प्रकार की स्थिति समाज मे अशांति
फेलाने की लिए दलितो , वंचितों , पिछड़ो
के नाम पर आंदोलन चला कर किया जा रहा हैं
अभी कुछ दिन पहले रोहित वेमुला का आंदोलन और अभी हाल मे ही भीमा कोरे गाँव का
आंदोलन दोनों ही घटनाओ मे विभिन्न असमाजिक तत्वो का ही हाथ पाया गया इन सभी का
दलितो पिछड़ो से कुछ लेना नहीं था | सरकार के गृह विभाग ने
माना की विदेशो से आने वाले ज्यादा तर धन आता तो गरीबी , और
शिक्षा पर्यावरण के नाम पर पर असल मे ये तीन छीजो पर खर्च किया जाता हैं |
1. देश मे आने वाले
जायदा तर विदेशी अनुदान का प्रयोग देश मे धर्मांतरण के लिए किया जाता हैं ये लगभग
70-80% हैं | इसी के तहत सरकार ने compassion international जो की सारी दुनिया मे बच्चो के उन्न्त जीवन के लिए , उनको पोष्ठिक भोजन मिले , स्वास्थ्य सेवाए आदि सभी
क्षेत्रो मे काम करती हैं परंतु ये सभी होता ईसु मशीहा के नाम पर हैं सरकारी अकड़ो
की माने तो सी. आई. वार्षिक विदेशी फंडिंग सर्वोधिक 45 मिल्यन
वार्षिक हैं,जिसका ये प्रयोग ईसाई मत को फेलने के काम मे लगा
जाता हैं |
2. दूसरा स्थान पर
विदेशी अनुदान मिलता हैं लेफ्ट- उग्रपंथी लोगो को जिसमे नक्सल आंदोलन और विभिन्न
सामाजिक आंदोलन जो केवल राजनीति से प्ररित होते हैं | अभी
हाल ही रोना विल्सन ( जे.एन.यू.का पूर्व छात्र और छात्र नेता ) का पकड़ा जाना कही
ना कही भारत के नक्सली और उनके विदेशी अनुदंदाताओ की पोल खोलती हैं | ये सभी गतिविधिया आज कल देश के प्रतिष्टित शिक्षा संस्थानो के शिक्षको के
द्वार संचालित हो रही हैं ये बड़ी अफशोसजनक बात हैं, दिल्ली
यूनिवरसिटि मे साई बाबा और पुना यूनिवरसिटि की सोमा सेन जैसे शिक्षको पर भी आरोप
लगे हैं |
3. तीसरा हैं सरकार की
विकास योजनाओं को रोकने के लिए , इसमे पर्यावरण की आड़ मे आंदोलनो को खाड़ा किया जाता हैं, पन बिजली प्रयोजनों के लिए बांध बनाना आवश्यक हैं परंतु विस्थापन और
पर्यावरण के मुद्दे पर तमाम आंदोलन भी खड़े हो जाते हैं ,
जिनसे देश की विकास दर मे लगभग 2-3% की गिरावट आती हैं |
इसमे कोई दो राय नहीं
हो सकती की देश मे स्थिति पिछले सालो मे सुधरी हैं पर वो सुधार जितना होना चाहिए वो
आज भी नहीं हो पाया हैं , आज भी गाँव मे किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हैं , तो नव युवको के पास रोजगार हैं नहीं देश की बड़ी आबादी आज भी मूलभूत
सुविधाओ से अछूती हैं ।
ऐसे मे इस प्रकार के एनजीओ जो विदेशी अनुदानों पर देश मे
अराजक वातवरण को निर्मित करते हैं , भारत के विकास को रोकते
हैं , विश्वविध्यालय के छात्रो को भड़का कर उनको सडको पर ला
समाज मे विद्वेष पैदा करने का काम कर रहे |
इसी सबको देख
इज़राइल की सरकार तमाम वामपंथी विचारो पर आधारित एनजीओ को अपने देश मे प्रतिबंधित
कर दिया इसके पीछे उनको तर्क थे ये सभी विकास के मार्ग मे सदेव दिक्कत पैदा करते
हैं |
भारत की सरकार जहा ऐसे एनजीओ प्रतिबंध लगाया वही पर
सरकार ने देश मे किसानो की आय दुगनी हो इस दिशा मे बहुत से कदम उठाए हैं ,
प्रधानमंत्री सड़क,सिचाई,बीमा आदि योजनो
को चलाया हैं वही दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सेवा को भी देश के लोगो के लिए
लेकर आई हैं वही आज सरकारी अकड़ो की माने तो सभी गाँव आज पूरी तरह बिजली से जुड़
चुके हैं |
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