Monday, August 20, 2018

पासी समाज का स्वर्णिम इतिहास : एक विश्लेषण - डॉ प्रवेश कुमार

                                              वीर पासी , धीर पासी , बिबेक और गंभीर पासी |

पासी समाज अपनी इन लिखी उक्त पंक्तियो की भाति ही अपनी वीरता के इतिहास से परिपूर्ण समाज के रूप मे हुमे देखने को मिलता हैं , वैसे संपूरण भारत मे विभिन्न भिन्न – भिन्न नमो से इस जाति को पहचाना जाता हैं | परंतु उतर भारत मे दुशाध पासवान, राजपासी , सरोज , रावत और उत्तर प्रदेश मे पासी जाति के नाम से इसकी अपनी पहचान रही हैं | जनसंख्या के आधार पर देखा जय तो देश भर मे एक बड़ी आबादी का ये प्रतिनिधित्व करता हैं उत्तर प्रदेश मे इनकी सर्वोधिक आबादी हैं 2001 के जनगणना को देखे तो इनकी आबादी दलितो मे चमार जाति के बाद दुसरे नंबर की सबसी बड़ी जनसंख्य वाली जाति हैं | 2001 की जनगणना के आकड़ो को यदि देखे तो कुछ चित्र सामने आता हैं , 2001 के अनुसार उत्तर प्रदेश की कुल आबादी मे 21.5 % आबादी दलितो की हैं जो देश की सबसे बड़ी दलित आबादी हैं जो उत्तर प्रदेश मे बसती हैं इस दलित आबादी मे सर्वोधिक आबादी चमार जाति की हैं जो कुल दलित आबादी का 56.3 % (19,803,106 ) हैं वही पासी समाज की आबादी दलितो मे दूसरे नंबर की सबसे बड़ी संख्या हैं जो 15.9% (5,597,002 ) हैं उसके बाद तीसरे स्थान पर धोबी जाति आती फिर क्रमश कोरी , खटीक आती जातिया आती हैं | परंतु अगर दलितो मे शिक्षा का स्तर देखे तो दूसरे नंबर की सबसे बड़ी संख्या वाला समाज पासी समाज चोथे पायदान पर हमको दिखता हैं जो क्रमश इस प्रकार हैं चमार , धोबी , बाल्मीकी , कोरी, खटीक , पासी | इसी प्रकार अगर रोजगार आदि मे देखा जाए तो वह भी पासी समाज की स्थिति अमूमन बुरी ही हैं | जब अकड़ो को देखते हैं तो मन मे सहज ही एक प्र्शन उठ जाता हैं की जो पासी समाज उत्तरप्रदेश की कई पट्टियों , क्षेत्रो मे राजा रहे हो उस समाज की स्थिति इतनी बुरी हो सकती हैं , मंत्री , सांसद , विधायक , पंचायतों मे पासी समाज का दबदबा हमेशा से रहा हैं फिर भी समाज रोजगारो से वंचित हैं , शिक्षा मे चोथे , पाचवे स्थान पर हैं इस सब पर पासी समाज को चिंतन करना होगा और पासी समाज के इतिहासकारो को भी इसमे अपनी बढ़-चढ़ कर भूमिका निभानी होगी |पासी समाज के इतिहास के बारे मे अगर देखा जाए कुछ पासी समाज के लोगो मानते हैं की उनका जन्म परशुराम के फरसे से हुआ हैं, इसी क्रम मे बद्रि नारायण की पुस्तक “ Women Heroes and Dalit Assertion in North India “ पुस्तक मे डलमऊ रायबरेली मे मोखिक इतिहास (oral history ) के संदर्भ से एक 24 वर्षीय पासी युवक राकेश चौधरी की बात को बताते हैं की राकेश बताते हैं की “ पासी समाज का जन्म परशुराम के पसीने से हुआ हैं, परशुराम जिस प्रकार वीर थे उसी प्रकार पासी समाज भी हैं वे ये भी बताते हैं की मध्यकालीन भारत मे पासी राजाओ का एक गौरवशाली इतिहास हैं “ इसी प्रकार तमाम मत हैं पासी समाज के उद्भव के जेसे एक मत मानता हैं की पासी सिपाही, सेनिक समाज हैं वो पासी शब्द को दो हिस्सो मे बाँट के बताते है , पा जिसका अर्थ होता हैं पकड़ और आसी का आठ होता हैं तलवार दोनों को जोड़ने पर अर्थ निकलता हैं तलवार को पकड़ने वाले| पासी समाज के इतिहास को जानने के प्रयास मे मुझे काफी पासी समाज के शोधकर्ताओ से मिलना हुआ इसी क्रम मे राजकुमार इतिहासकर की पुस्तक “ सीतापुर का इतिहास तथा पासी समाज के राजा महाराजा “ पुस्तक पढ़ने को मिली इसमे लेखक ने पासी समाज के राजाओ महाराजाओ के इतिहास पर एक नजर डालने का काम किया जो कबीले तारीफ हैं , सीतापुर के संस्थाप्क राजा छीता पासी (1150-1200) को माना वे कहते हैं ये राजा बहुत शक्तिशाली और वीर थे परंतु कन्नोज के राजा ने धोखे से आल्हा- उदल के माध्यम से रात के समय किले पर हमला करके राजा छीता पासी को हाराया फिर भी लोकगीतो मे इस पासी वीर की गाथाए सदेव समरणीय रहेंगी
छीता रहे छितयापुर के राजा , खेरा करीन खेरबाद आबाद |
आल्हा -उदल मार – काट कर लूटे सारा खजाना यार ||
जहर घोर शरबत और दारू मे सब सैनिक को दि | ऐसा कुटिल चाल थी अहिवंश की , धोखे के हुए सैनिक शिकार || इस प्रकार से छीता का चरित्र चित्रण करने काम किया हैं | इसी प्रकार राजा हंसा पासी , राजा खेरा पासी, वीर बाला पासी , रजा लहर्रा पासी आदि का नाम आता हैं ( देखे सीतापुर गजेटियर पृष्ठ संख्या 119 ) | राजकुमार इतिहासकर ने राजाओ के इतिहास के बारे मे बात करी जिसके साक्ष्य आज भी हमे देखने को मिल जाते हैं लखनऊ मे राजा लखना पासी का किला पासी राजाओ की आज भी गवाही देते हैं , कई दलित इतिहासकारो का मनना हैं की लखनऊ को बसाने वाले लखनापासी ही थे , मोहनदास नेमिशराय जैसे लेखको का ऐसा ही मानना रहा है | बिजली पासी और राजा सुहेलदेव भी पासी समाज के थे लखनऊ मे आज भी बिजली पासी का किला हैं , राजा सुहेलदेव बंगरमऊ के राजा थे इनहोने मुस्लिम आक्रांता गजनी के सेनापति गज़ी सईद मसूद या सालार मसूद को मारा था इस लिए समाज उनको वीर के रूप मे गिनता हैं हलकि सुहेलदेव पर अधिकार आज कर राजभर समाज भी करता हैं लेकिन वर्षो से सुहेलदेव के नाम पर पासी समाज और दलित समाज इकठा होता हैं 2001 से सुहेलदेव के नाम पर मेला भी आयोजित होता हैं , रायबरेली के डलमऊ मे महाराजा डालचंद का किला उनके वीरता और शौर्य का बताता हैं| इसी प्रकार अगर हम पास समाज का भारत की आज़ादी मे योगदान को देखे तो वो भी अविस्मरणीय हैं , जिसके प्रमाण उत्तर प्रदेश मे जगह -जगह दिख जाते हैं , सीतापुर जिले के लालबग पार्क मे खड़ा शहीदी स्तम्भ इसकी साक्षात गवाही देता हैं , इसी पर लिखे मेकू पासी , बैजु पासी , कल्लू आदि के नाम उनके आज़ादी की लड़ाई मे योगदान को बताते हैं | गांधी जी के स्वदेशी , सविनय अवज्ञा आंदोलन , भारत छोड़ो आंदोलन मे दलितो का बड़ा योगदान रहा हैं जिसमे पासी समाज ने भी बढ़ काढ़ कर भाग लिया | इसी क्रम मे देखे तो उदा देवी पासी के योगदान को भारत का इतिहास नहीं भुला सकता हैं उदा देवी अवध के नवाब वाजिद अली के सेना के महिला विभाग की सेनपति थी , उनके पति मक्का पासी भी नवाब के सिपासलहकार थे उनके वीरगति प्राप्त करने के बाद उदा 16 नवंबर 1857 को सिकंदरबाद के एक पीपल के पेड़ पर छिप कर गुरिला युद्ध पद्धति के तहत 32 अंग्रेजी सेनिकों को मौत के घाट उतारने का काम किया और खुद भी शहीद हो गई | ये पंक्तिया कुछ इस तरह उदादेवी की वीरता का बखान करती हैं-
देश की खातिर उदा लड़ी थी लड़ाई
सेकड़ों अंग्रेज़ो को उदा दिन गिराय
सीने पर गोली खाइएन नहीं हार मानिन
रहे दूध का दूध का दूध , पानि का पानि
इसी प्रकार रायबरेली के विरापासी की वीरता को कौन भूल सकता हैं , वीरा पासी एक साधारण सिपाही हैं पर जब उनके राजा बेनीमाधव को अंग्रेज़ बंदी बना लेते हैं तो अपनी जान की परवाह किए बिना अंग्रेजी जेल मे घुस कर रातो रात उनको सकुशल बाहर निकालने का काम करते हैं परंतु अंग्रेज़ो के दावरा पकड़े जाने पर उनको शहीदी ही मिलती हैं आज भी रायबरेली मे उनके नाम पर चौक बना हैं | इसी लिए किसी कवि ने कहा ....
पासिन जाति नहीं हैं भाई , पासिन वीर रस का भाव |
मादरी पासी को क्या कोई इतिहासकर भूल सकता हैं मदारी पासी को अवध का गांधी कहा जाता था , साहित्यकार कामतानाथ ने इनके बारे मे विस्तार से लिख हैं इसके अलावा इतिहासकर मुलाकराज आनंद ने “ The sword and the skill ‘’ इस उपन्यास मे रायबरेली के किषान आंदोलन का जीकर किया हैं उसमे मदारी पासी का भी जीकर होता हैं ( इंटरनेट माध्यम , दिनाक 31/12/17, 2:45 pm ) | मदारी पासी अवध क्षेत्र के “एका आंदोलन “ के नायक थे 1921 मे अवध क्षेत्र के किषानो , गरीब जनता , मजदूर , निम्न समाज के अधिकारो के लिए जमीनदारों और अंग्रेजी शासन के खिलाफ आंदोलन का बिकुल बाजा दिया थे इसी लिए उनको बराबंकी , बाहरिच , सुल्तानपुर हरदोई जिलो मे गांधी के रूप मे ही जाना जाता था | इसी प्रकार सामाजिक क्षेत्र मे कार्यरत और आज़ादी की लड़ाई के नायक जिनको 9 वर्ष जेल मे रहना पड़ा ऐसे बापू मसूरिया दिन पासी जी(2 अक्तूबर 1921 ) जिनहोने पासी समाज को जयरामपेशा जनजाति से निकाल अनुसूचित जाति मे कराया (1952 पुराना आदेश वापस हुआ ) | ऐसे ही तमाम नेता पासी समाज मे आज़ादी के बाद भी आए जिनहोने पासी समाज के लिए काम किया इसी कड़ी मे हम रामलाल रही को देखते हैं | रामलाल राही पासी समाज के बड़े नेता हैं आप चार बार लोकसभा के संसद और भारत सरकार मे ग्रहराज्य मंत्री रहे हैं आप उत्तर प्रदेश विधानसभा के भी सदस्य रहे हैं से जब बात हुई तो वो भी पासी समाज की वर्तमान और भूत परिस्थ्ति पर बात करते हुए दलित इतिहास की बात को करते हैं वे कहते हैं “ ये सही बात है की सीतापुर को छीतापासी ने बसाया , लखनऊ के राजा लखना पासी हुए पासीयो का इतिहास इस से भरा हैं परंतु इन राजाओ ने किया क्या अपने समाज के लिए ये प्रशन जरूर मेरे मन मे पैदा हो जाता हैं आगे वो कहते हैं की हमारा समाज तो हमेशा से संघर्ष करता रहा हैं आज़ादी की लड़ाई मे मक्का पासी , उदादेवी पासी , मदारी पासी, मुसरिया दिन पासी ऐसे तमाम लोगो को कौन भूल सकता हैं परंतु तथाकथित स्वर्ण समाज जिसमे मानवीय मूल्यो की सदेव से कमी रही ऐसे लोगो ने हमारे इतिहास और यू कहे तो दलित इतिहास को लिखने मे कभी भी रुची नहीं देखाई बल्कि उनकी उपेक्षा ही करी हैं, लेकिन दलितो मे पढे लिखे समाज ने अपने इतिहास की पहचानो को खोजा और उनके प्रतीक चिन्हो को अपने आसपास स्थापित किया , जिससे वो रोज देख कर प्रेरणा ले सके “(टेलिफोनिक साक्षात्कार, दिनाक 2/1/18, समय 12.00 दोपहर)|
इसी प्रकार पासी समाज के बड़े नेताओ मे आर॰के॰ चौधरी ( पूर्व मंत्री , उत्तर प्रदेश ) को किसी भी मायने मे अलग नहीं किया जा सकता पासी समाज को उत्तर प्रदेश मे लंबंदीकरण मे उनका बड़ा योगदान रहा हैं बीएसपी मे काम करते हुए बीएसपी से पासी समाज को जोड़ने का काम चौधरी ने ही किया था , चौधरी से जब बात हुई तो उन्होने ने भी पासी समाज के इतिहास को लेकर बाते की और मानुवदी व्यवस्था के दावरा उनकी किसी प्रकार उपेक्षा की गई इसकी बात भी की आर.के. चौधरी कहते हैं “ दलितो का इतिहास बड़ा गौरवशाली है उसमे भी पसियों का इतिहास उत्तर प्रदेश मे अधिक वीरतापूर्ण रहा हैं , परंतु स्वर्ण समाज के इतिहासकारो ने हमारे इतिहसा की उपेक्षा की और उसे कलामबद्ध नहीं किया , परंतु आज पासी समाज और अन्य समाजो मे पढ़ा लिखा वर्ग अपने आत्म इतिहास को खोज रहा हैं और लिख रहा हैं” (टेलिफोनिक वार्ता , 1/1/18 ) | ऐसे तमाम नेता और बड़े अधिकारी पासी समाज के रहे हैं संतो की परंपरा मे भी बहुत से संत रहे हैं जगजीवन दास जी , सुकाई दास साहब, संत भिखा दास जी आदि दलित आंदोलन मे संतो की भी बड़ी भूमिका रही हैं जहा संतो ने समाज को समानता , एकता का संदेश दिया वही दलित समाज को एक बनो , नेक बनो , सद कार्य करो , बुरे वयसनों से बचो , मांसाहार न करो , शराब आदि से दूर रहो की अहम बाते भी कही | ये बाते अन्य समाजों के लिए भी अहम हैं परंतु दलित समाज के और ज्यादा अहम हो जाती हैं कियूकी दलित समाज इन बुरे व्यसनों मे जायदा लिपट रहा हैं पासी समाज का तो मुख्य काम ही शराब से संबन्धित रहा हैं , अँग्रेजी समाज वैज्ञानिक क्रूक मानते हैं पासी समाज का नाम ही उनका इसलिए पासी हैं किउकी इसका अर्थ , ताड़ी के पेड़ो से निकले रस की शराब बनान हैं | पासी समाज आज भी इस काम को कर रहा हैं कच्ची शराब का धन्दा आज भी गाँवओ मे पासी समाज ही करता हैं , इसलिए समाज की इस प्रकार की बुरी वृतियों को छुटाने का कार्य संतो ने किया जिसकी सदेव प्र्संसा होनी चाहिए | दलित संतो की वाणी मे वो कहते हैं
पिपरे पथरे को सबे पुंजे |
भीतरे के देवता को काऊ न पूजे ||
हमारा समाज मंदिरो और मधाओ के चकार मे बजी बहुत पैसा खराब करता हैं दलित सेंटो ने इस वृति से बाहर निकालने की बात भी की | इस तरह पासी समाज का इतिहास बड़ा गौरव पूर्ण हैं परंतु आज के समय मे शिक्षा के प्रति उनकी उड़सिनता ने समाज मे इस समाज की स्थिति को बहुत बड़ा झटका दिया हैं और समाज के पीछे होने का अहम कारण भी अशिक्षित होना रहा हैं
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7 comments:

  1. ब्लॉग एडिट कीजिए
    और पसीने की पैदाइश पढ़ाना बंद कीजिए
    कोई कुछ भी कहता है क्या ये मुमकिन है कि कोई इंसान पसीने से पैदा हो सकता है ?

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  2. वक़्त आ गया है भारत का दबा इतिहास बाहर निकाला जाए चाहे वो कोई भी हो किसी का भी हो इतिहासकारों को काम पर लग जाना चाहिए

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  3. वक़्त आ गया है भारत का दबा इतिहास बाहर निकाला जाए चाहे वो कोई भी हो किसी का भी हो इतिहासकारों को काम पर लग जाना चाहिए। औऱ पसीने से पैदाइश नही होती असल मे शर्मिंदगी के चलते सच कहने से डरते है सच ये है उनके वीर्य से। परशुराम जी की ये संतान तलवार पकड़ने के लिए ही बनी थी जिसे पासी कहकर पुकारा गया।
    अलका मालिहान

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  4. परशुराम पाशी समाज में पैदा हुए थे न कि पानी परशुराम के पसीने से।

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  5. तुम दलित लोग खटिक जाति को अपने साथ क्यू जोड़ रहे हो😂। तुम दलितों का खटिक जाति से कोई लेना देना नही हे।। खटीक तुमको देखना पसंद नहीं करते लेकिन खटीक दलित भी नही हे लेकिन तुमको खटीक नाम हर जगह अपने साथ जोड़ना हे।। जरूर कुछ तो खास बात हे खटीको में😂😂😂

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  6. खटिक दलित नही होते।।। तुम अलग ग्रुप बनाओ।। खटिक तुम्हारे ग्रुप का सदस्य नहीं हे।।। अपना अलग बनाओ।।

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