Saturday, February 23, 2019

स्वच्छता अभियान के प्रेणता संत गाडगे बाबा


                    स्वच्छता अभियान के प्रेणता संत गाडगे बाबा
                                                      डॉ प्रवेश कुमार
                                                
स्वच्छता अभियान और सामाजिक समरसता को अपने जीवन का आधार बना लेने वाले बाबा गाडगे का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती जिले के शेठगाँव में 23 फ़रवरी 1876 को हुआ । आपका जन्म धोबी जाति  में हुआ जो महाराष्ट्र में पिछड़ी जाति के अंतर्गत आती हैं परंतु ये जाति देश भर में दलित अशप्रश्य जाति वर्ग में ही शामिल हैं। धोबी जाति जिसे रज़क , कनोजिया आदि समाजों  के नाम से जाना जाता हैं, ये समाज मुख्यतः  कपड़े धोने के कार्य में ही सम्पूर्ण देश में संलग्न हैं । ये कार्य करना इनका  पुशतेना  पेशा हैं , ये समाज व्यवस्था में जज़मानी व्यवस्था में भी अहम भूमिका निभाता हैं । बाबा गाडगे का सम्बंध इसी जाति से था,हाला की संतो -महात्माओं की जाति को कभी भी भारत में नहीं पूछा गया हैं “ जाति ना पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान” की परम्परा भारत की परंपरा रही हैं,इसीलिए बाबा के भक्तों में सर्वोधिक संख्या तथकथित सवर्ण कहे जाने वाले वर्ग की ही थी , उनके अनन्य भक्त देशमुख जो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे वे ही उनकी कई संस्थाओ के संरक्षक भी थे । गाडगे बाबा बाल्यकाल से ही सामज जीवन में घटित हो रही घटनाओं को बहुत बारीकी से देखते थे , बचपन में बकरी चराने जाते तो कही-कही बैठ कर अपने सारे साथियों को कितना ही ज्ञान दे जाते इसका उनका भी भान ना होता था ।
दलित - पिछड़ा समाज और विशेषत: धोबी समाज में व्याप्त धार्मिक कर्मकांड आदि की प्रवृति का अधिक प्रचलन था जिस कारण आर्थिक रूप से अन्य पिछड़ी-दलित जातियों की तुलना में ये अधिक सम्पन्न होने के बावजूद भी ये अधिक दयनीय स्थिति में रहने को मजबूर था  धार्मिक आडंबरवाद में फस  कर अपने धन का अधिक हानि ये झेलता था । बच्चे के जन्म से लेकर अपने वृद्धों के मृत्यो संस्कार तक जाति भोज और दान - दक्षिणा देने में ही उनकी बहुत सी सम्पत्ति का वो नुक़सान कर लेते थे और गाँव के मुनिम , ज़मींदारों के क़र्ज़दार भी बन जाते थे । इन सब से मुक्ति की आवाज़ को बुलंद करने का कार्य बाबा गाडगे ने किया , दलितों में विधमान शराब और तमाम बुरे व्यसनो से मुक्ति की बात बाबा ने की कियुकी किस प्रकार उनके पिता की मृत्यु भी इसी शराब पीने के कारण से हुई थी जिस कारण उनको अपने मामा के यह रहना पड़ा ये स्वपीड़ा उनको थी इसलिए वे शराब आदि व्यसनो से दलितों और अन्य समाजों  को बचने की बात करते थे।
बाबा पढ़े - लिखे नहीं थे परंतु शिक्षा के महत्व को वो बख़ूबी जानते थे इसी लिए समाज में सभी पढ़े इसके लिए उन्होंने बड़े कार्यक्रमों का संचालन किया , उन्होंने अपने अनुयियो के सहयोग से अपने जीवित रहते ही 24 शिक्षण संस्थाए और 14 छात्रावासों का निर्माण कराया ।
उनके परिनिर्वण  के बाद उनके शिष्यों ने 12 विद्यालयों और 12 छात्रावासों का निर्माण किया। संत गाडगे का बाबा साहब भीमराव राम जी अम्बेडकर जी के प्रति बहुत प्रेम था इसी का परिणाम था की वे अपने सारे शिक्षण संस्थानो की देख रेख अम्बेडकर के कंधे पर सोप देते थे । बाबा का अम्बेडकर से और उनके आंदोलनो से बड़ा लगाव था इसी का परिणाम था की वो  अम्बेडकर को समय-समय पर आर्थिक सहयता  आंदोलोनो हेतु देते रहते थे । गाडगे आध्यात्मिक पुरुष थे उनकी ज़ुबान पर सदेव “गोपाला ,गोपाला” रहता था परंतु वे “थोथे आडंबरवाद” के कतिय  पक्षधर ना थे । हिंदू समाज में उनकी आस्था थी परंतु हिंदू आस्था पर चल रहे कर्मकांडवाद और जाति भेद आदि पर उनका विरोध भी काफ़ी रहा । बाबा गाडगे ही थे जिन्होंने बाबा साहब अम्बेडकर का “केलाराम मंदिर प्रवेश” के आंदोलन को चलने की बात की थी ये गाडगे ही थे जिन्होंने कहा की अम्बेडकर अगर आप “पंथ” परिवर्तन करना ही चाहते हो तो ऐसा पंथ ,धर्म स्वीकार करना जो देशज हो उसकी जड़े भारत में विद्यमान हो इसी का परिणाम था । अम्बेडकर ने बौध मत को स्वीकार किया जो हिंदू सनातन धर्म का ही एक हिस्सा हैं । बाबा  इस बात को जानते थे की दलित समाज का हिंदू आस्थाओं में अटूट विश्वास हैं जबकि स्वर्ण समाज उसके साथ अमानवीयता का व्यवहार करता हैं उसके बावजूद भी वो मंदिरो में जाता हैं अंदर ना भी प्रवेश कर पाए पर वो बाहर से ज़रूर अपने भगवान को निहार उनमें अपनी भक्ति को प्रदर्शित करता हैं। महाराष्ट्र में विट्ठल भगवान का बड़ा दार्शनिक देवस्थान हैं सभी वहाँ जाते हैं दलित भी पैदल चल कर “परिक्रमा” कर के भगवान विट्ठल के दर्शन हेतु जाता हैं , परंतु उनके रुकने खाने - नहाने के लिए कोई धर्मशाला वहाँ नहीं थी जिसमें ये दलित बंधु रुक सके इसके कारण उनको बारिश और ठंड में भी बाहर खुले में ही रहना पड़ता था इसलिए बाबा  तमाम देवस्थानो के समीप धर्मशालाओं का निर्माण कराया । गाडगे बाबा इन धर्मशालाओं में किसी प्रकार के भेद की अनुमति नहीं देते थे ये सभी समाजों  के लिए थे दलित , पिछड़ा , स्वर्ण सभी के लिए । गाडगे बाबा ने अपने सम्पूर्ण जीवन में सूचिता , स्वच्छता , शिक्षा आदि की बात की , बाबा अपने सामाजिक कार्यक्रमों से पूर्व सुबह ही उस क्षेत्र की सफ़ाई स्वयं करते थे ये सब देख अन्य समाज में लोग भी उनके इस अभियान के साथ जुड़ जाते थे । बाबा स्वच्छता को व्यक्ति के व्यक्तित्व का एक अहम हिस्सा मानते थे , वे देखते थे दलितों की बस्तियाँ सदेव गंदी रहती हैं लोग अपना घर तो साफ़ कर लेते हैं पर बाहर वे सदेव गंदी रहती हैं , इस कारण से दलितों के साथ अन्य समाज सम्पर्क करने में गुरेज़ करता हैं ।


समाज में व्याप्त अस्वच्छता के कारण तमाम तरह की बीमारियाँ का वास होता हैं समाज में दलित वैसे ही ग़रीब हैं जो कुछ वो बचा पाता  हैं वो उसे
 दवा और इलाज में ही ख़र्च कर देता हैं। इस सब का एक ही इलाज हैं समाज में शुद्ध वातावरण का निर्माण करना इसलिए स्वच्छता को सभी आत्मसात  करे ये अनिवार्य हो जाता हैं।  ऐसा ही कार्यक्रम मह्त्मा गांधी भी देश भर में चला रहे थे ,जिनमे दलित  सेवा  बस्तियों की स्वच्छता प्रमुख रूप से शामिल था। बाबा के स्वच्छता के अभियान और उनके मनोभाव को पूर्ण करने हेतु 2000-01 में महाराष्ट्र सरकार ने उनके सम्मान में “ संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान” प्रारंभ किया , इसके साथ ही 26 जनवरी की राजपथ परेड में गाडगे जी झाँकी भी निकली गई ।
 बाबा ने गौवंश के संरक्षण हेतु 2 गोशालाओ  का भी निर्माण कराया सभी लोग अपने घर में गोवंश  की सुरक्षा और सेवा करे ऐसा संदेश बाबा ने समाज और अपने अनुयायियों को दिया । बाबा ने समाज में दिव्यंगो के लिए और वृद्ध वर्ग के लिए 5 आश्रमों का निर्माण कराया इनको भी केवल दलितों के लिए खोला जाए ऐसा नहीं सर्वसमाज  के लिए सब सुलभ हो इसकी बात बाबा गाडगे ने की , बाबा गाडगे समाज में व्याप्त अशप्रश्यता को समाज का कोढ़ माना तमाम अगडी कही जानी वाली जातियाँ और दलित - पिछड़ी जातियों के बीच संवाद ,सहभोज ,अंतरजातिय विवाह होना चाहिए । सतत संपर्क , संवाद से ही समाज सही दिशा में जा सकता है । बाबा ने अपने पूरे जीवन में स्वच्छता और सामाजिक समरसता को लेकर काम किया सामाजिक समरसता का विचार समाज में नियम बनाने वाले स्वर्ण समाज के व्यवहार और आचरण में बदलाव के साथ जुड़ा था इसी को ठीक करने का प्रयास बाबा अपनी सभाओं में करते थे सामूहिक भोज अथवा सहभोज आदि की बात बाबा करते थे और इनका आयोजन भी बिना प्रत्यक्ष लड़ाई से समाज का मन बदले और समाज में समरसता आए इसकी बात बाबा ने सदेव की हैं । सभी समाजों में सम्पर्क, संवाद और नितांत बंधुत्व भाव का निर्माण ये ही बाबा का मुख्य विचार था ।
सहायक प्राध्यापक, तुलनात्मक अध्ययन एवं राजनीतिक सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय,नई दिल्ली



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