Monday, August 20, 2018

डॉ ॰ अंबेडकर हिन्दू सामाजिक संरचना की आलोचना - डॉ प्रवेश कुमार


हिन्दू जाति मे पैदा होता हैं इसी के सदस्य के रूप मर जाता हैं| कोई भी बिना जाति के नहीं होता और जाति से बच भी नहीं सकता वो जनम से लेकर अपनी मृत्यु तक जाति से बंधा रहता हैं | वह उस जाति की व्यवस्था पर परम्पराओ का दास हो जाता हैं| जिनके ऊपर नियंत्रण नहीं रहता ( बा.अ.स.वा. खंड -6,179)|”



हिन्दू सामाजिक संरचना वर्ण और जाति तथा उस आधार पर होने वाली अस्प्र्श्यता पर डॉ अंबेडकर के विस्तार से अपने विचारो को व्यकत किया हैं | अंबेडकर ने जाति, वर्ण और उस आधार पर होने वाले उत्पीड़न के मूल मे हिन्दू सामाजिक संरचना को माना हैं | अंबेडकर समग्र आधायन 6,13 इस मे विस्तार से हिन्दू सामाजिक व्यवस्था पर बात की , उनके जाति तोड़क मण्डल को लिखे पत्र जो बाद मे जाति का उच्छेद नामक पुस्तक के रूप मे प्रकाशित हुआ | इन सब मे उन्होने भारतीय समाज मे व्याप्त जाति व्यवस्था और उस आधार पर होने वाले अत्याचार को बखूबी परिलक्षित किया हैं | अंबेडकर की हिन्दू सामाजिक संरचना की आलोचना को समझने से पूर्व हमे हिन्दू सामाजिक संरचना को जानना आवश्यक हो जाता हैं |हिन्दू सामाजिक संरचना के मूल तत्त्व ( आधार ) :-  प्राचीन हिन्दू समाज को समझने जानने के लिए उसके स्त्रोतो को जाना होगा हिन्दू धर्म के श्रोतों मे सर्वप्रथम वेदो को लिया जा सकता हैं चार वेद ( ऋग्वेद , आयजुर्वेद , अथर्वेद , सामवेद ) हैं , लगभग सेकड़ों की संख्या मे उपनिषद हैं , पुराण , स्मृतिया , श्रुति , आरण्यक आदि हैं| ये सभी हिन्दू समाज के आधार को निर्मित करते हैं , हिन्दू धर्म के जीवन तत्व की बात करते तो वो निम्न हैं जिस पर हिन्दू समाज की सारी संरचना निर्भर करती हैं |1. आश्रम व्यवस्था :- हिन्दू समाज मे चार आश्रम का अधिका धिक महत्व हैं और ये आश्रम जीवन के चार चरणों को भी इंगित करते हैं इस व्यवस्था मे मानव जीवन की कल्पना 100 वर्षो की करी गई है और उसे फिर चरणों मे बराबर विभाजित किया गया हैं |2. ब्रह्मचर्य आश्रम ( 1-25 वर्ष ) :- ब्रह्मचर्य आश्रम पूरणत: ज्ञान की प्राप्ति के लिए समर्पित था , विधार्थी गुरुकुल मे रह कर गुरु के चरणों मे बैठ शिक्षा ग्रहण करता हैं , शिक्षा नैतिक , गणित , विज्ञान , दर्शन , युद्धकला आदि पर आधारित थी | परंतु क्या ये शिक्षा शूद्रो को मिलती थी उत्तर मिलता हैं की वेदिक काल मे तो शिक्षा क अधिकार शूद्रो को था सभी वर्णो के साथ परंतु बाद के समय मे ये शिक्षा और आश्रम गुरुओ क बिभाजन हो गया | राज परिवार और आम जन फिर आमजनों और शूद्र और अन्य वर्णो मे ये बट गया |डॉ अंबेडकर ने कहा की “ छंदोगयोउपनिषद (6-1-2) की एक कथा हे शूद्र रेकव ने वेदध्यान कराया इससे भी बढ़ कर यह बात हैं की “ कवश एलशू “ ऋषि शूद्र थे | उपरोकत और ऋग्वेद के दसवे मण्डल के तमाम श्लोको के रचियाता खुद एलेशू ही हैं ( बा.अ.स.वा. खंड -13,82 )|”(1) ब्रह्मचर्य आश्रम ( 5-25 ) :- परंतु वेदिक कल के बाद शिक्षा का अधिकार शूद्रो से चीन लिया गया| इसी ब्रह्मचर्य आश्रम का संबंध कई संस्कारो से था जिस मे से “ जानेऊ संस्कार “ प्रमुख थे और समाज मे जातिवाद का बीज बोने वाले प्रमुख तत्व मे वे प्रमुख थे |(2) ग्रहस्थाश्रम व्यवस्था ( 25-50) :- इस कल को व्यक्ति अपने परिवार के संवर्तन मे लगाता हैं , और आओने ऋणों को चुकता हैं जिसमे मातृऋण , पिता का ऋण चुकाना अथवा पुत्र पैदा कर के वंशो का विस्तार करना |(3) सन्यास आश्रम (50-75) :- इस समय व्यक्ति भगवान की भागती मे लिन होने का समय हैं , परिवार से अलग काही कुटीया बना कर पत्नी समेते अपना जीवन व्यपन करेगा और सत्या की प्राप्ति हेतु भगवान की भक्ति मे लीन हो जायगा |(4) वन्प्र्स्था आश्रम (75-100) :- ये व्यक्ति के जीवन का अंतिम समय हैं वो जंगल की और चला जाए और भगवान की भक्ति करता रहे |3. पुरषार्थ :- हिन्दू धर्म या सामाजिक संरचना मे चार पुरषार्थ की बात की गई है | (क). धर्म :- यहा धर्म से अभिप्रया जीवन को सयमित होकर चलाने से हैं , और समाज व्यवस्था के व्यवस्थित संचालन हेतु कर्तव्यो का पालन करना हैं | इस धर्म का महत्व भारतीय चिंतन और समाज व्यवस्था मे अधिकाधिक रहा हैं , बाबा साहब ने भी माना की धर्म व्यक्ति को समाज व्यवस्था मे संयमित रखने का एक कारगर तत्व हैं , धर्म का उढ्भव ही तब होता हैं जब आरके से जायदा व्यक्ति होते हैं | अकेले व्यक्ति के लिए कोई धर्म नहीं होता | भारतीय दर्शन मे धर्म आचरण और कर्तव्यो के साथ जुड़ा हैं| बाद मे ब्राह्मणवादी चिंतन इसको स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग बाता समाज की अवांछनीय बातो को भी लोगो से मनवाया |(ख). अर्थ :- व्यक्ति को अपना जीवन चलाने के लिए अर्थ की अवश्यकता होती हैं | परंतु जीवन यापन करने मे अर्थ जरूरी हैं परंतु अर्थ को किसी अनेतिक कार्यो द्वारा न अर्जित किया जाए ये भी जरूरी ध्यान रखना हैं | अर्थ का सृजन भी धर्म संगत होना चाहिए |(ग). काम :- जीवन मे काम का भी महत्व हैं उसको भी संयमित रूप मे किया जाना चाहिए |(घ). मोक्ष :- जीवन मे सबसे बड़ा लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना हैं |3. ऋण :- हिन्दू समाज दर्शन मे जीवन को त्याग के लिए माना गया हैं , इसी से कर्म भूमि भी कहा गया हैं | इसी त्याग की भूमिका का हमारे मनीषियों ने ऋणों को स्तहन दिया हैं |(क). देव ऋण : जो भी हमे जीवन मे प्राप्त हुआ हे वो सब भगवान की देंन हैं | इसीलिए इस सबके लिए भगवान के प्रति सम्मान का भाव और त्याग करना |(ख). ऋषि ऋण :- जिसकी कृपा से आपने आपने जीवन के लक्ष्य की और बढ़े ऐसे गुरु जानो के प्रति आप के मन मे सम्मान और त्याग का भाव ही गुरु ऋण , ऋषि ऋण हैं |(ग). पित्रऋण :- आपने पिता के वंश को बढ़ाना पुत्र के द्वरा |(घ). अतिथि ऋण :- आपके यहा कोई अतिथि आ जाए तो उसका खूब सम्मान , सत्कार करना |(ड). भूत ऋण :- अपने पित्रो का ऋण अथवा पूर्वजो का सम्मान |4. हिन्दू समाज संरचना के सोलहा संस्कार :- हिन्दू समाज मे सोलहा संस्कारो की बात की जो जन्म से मृत्यु तक जुड़े हैं जिसमे प्रमुख हैं उपनयन संस्कार , विवाह संस्कार |5. वर्ण व्यवस्था :- हिन्दू समाज व्यवस्था मे वर्ण व्यवस्था जिस पर सारी हिन्दू व्यवस्था ही खड़ी हैं , इसी व्यवस्था के करना कोई उच्च हो गया और कोई निम्न हो गया | वर्ण व्यवस्था हिन्दू धर्म की प्राण वायु हैं ऐसा अंबेडकर मानते हैं |6. अन्य :- हिन्दू समाज के कुछ और भी बाते ही जिन पर ये समाज व्यवस्था टिकी हुई हैं | जैसे जानेऊ संस्कार , पवित्रता – अपवित्रता , अस्प्र्श्यता – स्पर्शयता , सवर्ण – अवर्ण , स्वर्ग – नरक आदि |ये सभी हिन्दू समाज संरचना को जानने समझने के लिए अनिवार्य हैं इनहि तमाम आधार को मान बाबा साहब डॉ॰ अंबेडकर ने हिन्दू सामाजिक संरचना की भरसक आलोचना की हिन्दू व्यवस्था की आलोचना के उनके प्रमाण हैं की हिन्दू एक लोकतान्त्रिक समाज नहीं है | इसको मापने के लिए वो कुछ तत्वो की बात करते हैं | अंबेडकर मानते हैं की एक स्वतंत्र और लोकतान्त्रिक समाज के लिए तीन तत्व होने जरूरी हैं (1). स्वतन्त्रता (2). समानता (3). बंधुत्व अथवा भाई चारा इन तीन आधारो पर वो किसी समाज के स्वतंत्र समाज हैं या नहीं इसकी जांच करते हैं , वे कहते हे हिन्दू समाज की संरचना के मूल मे ही आसमानता हे अगर हम समानता तत्व की पड़ताल करते हैं तो देखे की हिन्दू समाज की संरचना वर्ण व्यवसथा पर आधारित हैं | ये वर्ण व्यवस्था हिन्दू जाति व्यवस्था को जन्म देता हे हिन्दू वर्ण व्यवस्था मैं व्यक्ति का जन्म एक विराट पुरुष के शरीर के अंगो से बना हैं | विराट पुरुष के मस्तिषक से ब्राह्मण का जन्म हुआ हैं , सीने से , भुजाओ से क्षत्रिया , पेट से वैश्य , चरणों से शूद्रो का जन्म हुआ |
ब्राह्मणोस्य मुखमासीद बहुरजन्य: कृत : |
उरुतदस्य यद्वैश्य: पदभ्यो: शूद्रोजायत ||
                                                          ( ऋग्वेद ,10 मण्डल,13 शलोक ) 

इसी आधार पर जो शरीर की जीतने ऊपर के अंग से पैदा हुआ उसका उतना ही समाज मे उचा स्थान हैं | बाबा साहब इसी को श्रेणीगत असमानता ( Graded inequality ) कहते हैं | अंबेडकर कहते हैं “ हिन्दू समाज एक बहुमंजिला इमारत हैं , जिसमे सबसे ऊपर के महाले पर ब्राह्मण हैं, उससे नीचे क्षत्रिया हैं जो ब्राह्मण के बाद श्रेष्ठ हैं, तीसरी मंजिल पर वैश्य हैं , चौथे मंज़िले पर शूद्र हैं जो सबसे नीचे स्तर पर अछूत समाज हैं जो वर्ण व्यवस्था का हिस्सा नहीं हैं” | समाज मे असमानता का वातावरण इसी वर्ण व्यवस्था का परिणाम है इसी निचली – उचली जाति, वर्ण व्यवस्था के कारण इसी वर्ण व्यवस्था से जाति का जन्म हो गया | अम्बेडकर कहते हैं “ निसंदेह जाति – व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था का ही विकसित रूप हे , लेकिन वर्ण व्यवस्था के अध्ययन से हम जाति – व्यवस्था की कोई जानकारी प्राप्त नहीं कर सकते जाति का अध्ययन वर्ण को अलग रखकर करना होगा ( बा.अ.स.वा. खंड -10,52 )|”जाति वर्ण हैं इस पर काफी भेद है परंतु कुछ भी हो पर समाज के एक वर्ग का इसी जाति के कारण जन्म हुआ , और इस दलित समाज का उत्पीड़न भी हिन्दू समाज मे व्यापत 6700 जातियाँ, 117 गोत्र हैं| इसी जाति के कारण वर्षो से दलित समाज का उत्पीड़न होता आ रहा है और आज भी बदस्तूर उत्पीड़न जारी है| अम्बेडकर ने जाति को हिन्दू समाज की संरचना का मूल माना और इसके उछेद की मांग की ये समाज से जाति व्यवस्था समाप्त होना चाहिए| अपने द्वारा जाति तोड़क मण्डल को लिखे पत्र मे बाबा साहब ने जाति को पूर्णत: समाप्त करने की वकालत की हिन्दू समाज व्यापात जाति के कारण मनुष्य – मनुष्य का आपस मे भेद कोई एक दूसरे को छूने से भी परहेज करते हैं इसी से समाज मे अश्प्र्श्यता आ गाई | समाज मे छुआ छूत ने समाज मे इन्सानो को जानवर से भी बदतर स्थिति मे ला खड़ा किया | एक जानवर किसी तालाब का पानी पी सकता हैं पर इंसान होकर भी वो तालाब का पानी नहीं पी सकता, सार्वजनिक सड़क पर चल नहीं सकता | अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक “जाति प्रथा का उच्छेद” में पेशवा काल का वर्णन किया हैं, जिसमें उन्होने बताया की पेशवा काल मे दलित समाज के लोगो को अपने गले मे मिट्टी की हांडी लटकानी पड़ती थी क्यूंकि वो कही भी थूक नहीं सकते थे अत: वो गले की हांडी मे ही थूकने के लिए बाध्य थे | उनको अपनी कमर मे झाड़ू बांधना पड़ता था ताकि उनके चलने से सार्वजनिक सड़क गंदी ना हो जाए इसलिए वो अपनी कमर मे झाड़ू बांधते थे, इसके अतिरिक्त उन्हे अपने पैरो मे घुंघुरू बांधने पड़ते थे वो इसलिए कियूकी उनके सड़क पर चलने से घुंगरू की आवाज से स्वर्ण समाज को पता चल जाए की दलित का इधर से जाना हो रहा हैं | ये अश्प्र्श्यता धीरे -धीरे एक प्रथा का रूप लेना लगा और फिर छुआ -छूत ने धर्म का लबादा ओढ़ लिया | अम्बेडकर कहते हैं की जाति व्यवस्था का जन्म भले ही मनु न किया हो परंतु मनु ने ही वर्णो की पवित्रता का अहम उपदेश जरूर दिया | जैसे की मैंने पहले ही स्पष्ट किया हैं , वर्ण – व्यवस्था जाति की जननी हैं और इस अर्थ मे मनु जाति – व्यवस्था का जनक न भी हो परंतु उसके पूर्वज होने का उस पर निश्चित ही आरोप लगाया जा सकता हैं| जाति व्यवस्था के संबंध मे मनु का दोष क्या हैं , इसके बारे जहे जो स्थिति हो , परंतु इस बारे मे कोई प्रश्न ही नहीं उठता की श्रेणीकरण और कोटी-निर्धारण का सिधान्त प्रदान करने के लिए मनु ही जिम्मेदार हैं ( बा.अ.स.वा. खंड -6,44 )|” बाबा साहब ने कहा “ अस्प्र्श्यता एक सामाजिक धारणा हैं जिसने एक प्रथा का रूप धारण कर लिया है  ( बा.अ.स.वा. खंड -10,133)|” जाति के अलावा बाबा साहब ने हिन्दू समाज मे नारी की स्थिति पर भी अपनी चिंता व्याकत की अंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल के माध्यम से हिन्दू महिलाओ की मुक्ति की बात की हिन्दू समाज मे महिलाओ को दूसरे दर्जे का नागरिक ही माना हैं |                               ढ़ोल गवार शूद्र पशु नारी|                               ये सब ताड़न के अधिकारी||                                                     ( तुलसीदास रामायण )इसी प्रकार एकवल्क्य धर्म सूत्र मे कहा गया की स्त्री , कौआ दोनों मे झूठ और अंधकार निहित हैं | वही मनु समृति मे महिलाओ को मात्र दास ही माना गया हैं और पति की सेवा मे ही उसको स्वर्ग मिलेगा | ऐसी धारणा हैं अंबेडकर ने अपने जीवन काल मे शूद्रो , दलितो, महिलाओ के लिए अधिकाधिक संघर्ष किया |


संदर्भ ग्रंथ सूत्र
1. अंबेडकर , बी . आर .(2010) : जाती प्रथा का उच्छेद , गौतम बुक्स , दिल्ली
2. B.R. Ambedkar volume : 6,19,13 , Publication Ministry of Social justice , Govt. of India
3. Ghuriya , G.S.(1974) : Caste and race in india , popular prakshan , Mumbai
4. सहाय , गंगा (2006): ऋग्वेद , संस्कृत साहित्य प्रकशन , नई दिल्ली
5. कुमार , प्रवेश (2011): दलित अस्मिता की राजनीति , मानक पुब्लिकेशन , दिल्ली
6. कुमार , प्रवेश (2012): दलित अस्मिता के प्रतीक , देशना प्रकशन , दिल्ली
7. सहाय ,(डॉ) शिव स्वरूप (2014): प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास ( हिन्दू सामाजिक संस्थाओ सहित ), मोतीलाल प्रकशन , दिल्ली
8. Kumar,(Dr) Vivek (2002) : Dalit Leaders in india , Kalpaz prakshan house , Delhi
9. श्री निवास ,एम .एन .(2001) : आधुनिक भारत मे जाति , राजकमल प्रकाशन , दिल्ली
10.अंबेडकर , बी . आर (2002): शूद्र कौन थे , मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी , मध्यप्रदेश
11.कुमार, (डॉ) प्रवेश (2014) : हिन्दू जाति का सच्च , शोधपर्व , नासिक, महाराष्ट्र
12.गोपाल ,(डॉ )कृषण (2015) : भारत की संत परंपरा और सामाजिक समरसता , मध्य प्रदेश ग्रंथ अकादमी

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